बाबा श्रीचंद की जीवनी

 

dhan dhan baba shri chand ji

बाबा श्रीचंद की जीवनी


बाबा श्रीचंद लुप्तप्राय उदासीन संप्रदाय के पुन: प्रवर्तक आचार्य है। उदासीन गुरुपरंपरा में उनका 165 वाँ स्थान हैं। उनकी आविर्भावतिथि संवत 1551 भाद्रपद शुक्ला नवमी तथा अंतर्धानतिथि संवत् 1700 श्रावण शुक्ला पंचमी है। बाबा श्रीचंद के प्रमुख शिष्य श्री बालहास, अलमत्ता, पुष्पदेव, गोविन्ददेव, गुरुदत्त भगवद्दत्त, कर्ताराय, कमलासनादि मुनि थे।

बाबा श्रीचंद का जन्म 8 सितम्बर 1494 को पंजाब के कपूरथला जिला के सुल्तानपुर लोधी में हुवा था। उनका माता का नाम सुलखनी था। श्रीचंद जी ने बहुत छोटी उम्र में ही योग के तरीकों में महारथ हासिल कर लिए थे। वे अपने पिता गुरु नानक के प्रति हमेशा समर्पित रहे तथा उन्होंने उदासीन सम्प्रदाय की नीव रखी। उन्होंने दूर-दूर तक यात्रा की और गुरु नानक के बारे में जागरूकता फैल गई।

जन्म के समय उनके शरीर पर विभूति की एक पतली परत तथा कानों में मांस के कुंडल बने थे। अतः लोग उन्हें भगवान शिव का अवतार मानने लगे। जिस अवस्था में अन्य बालक खेलकूद में व्यस्त रहते हैं, उस समय बाबा श्रीचंद गहन वन के एकांत में समाधि लगाकर बैठ जाते थे। कुछ बड़े होने पर वे देश भ्रमण को निकल पड़े। उन्होंने तिब्बत, कश्मीर, सिन्ध, काबुल, कंधार, बलूचिस्थान, अफगानिस्तान, गुजरात, पुरी, कटक, गया आदि स्थानों पर जाकर साधु-संतों के दर्शन किये। वे जहां जाते, वहां अपनी वाणी एवं चमत्कारों से दीन-दुखियों के कष्टों का निवारण करते थे।

बाबा श्रीचंद की मृत्यु माघ सदी में 13 जनवरी 1629 को किरतपुर में हुई। उदासीन सम्प्रदाय परम्पराओं का मानना है की बाबा श्रीचंद कभी मर नहीं सकते। वे चम्बा के जंगल में गायब हो गए। बाबा श्रीचंद के अदृश्य होने के बाद बाबा गुरदित्ता उदासीन सम्प्रदाय के प्रमुख उत्तराधिकारी बने।

 

Comments

Popular posts from this blog

भगवान शिव का अवतार थे बाबा श्रीचंद जी

बाबा श्रीचंद जी महाराज