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बाबा श्रीचंद जी महाराज

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  Dhan Dhan Baba Shri Chand Ji बाबा श्रीचंद    जी गुरु नानक जी के बड़े पुत्र और उदासीन पंथ के संस्थापक थे। बाबा जी के जन्म के समय ही से शरीर पर धूनी की राख लगी थी व एक कान में मांस की मुंदरा थी। बाबा श्रीचंद जी को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। भादो शुकलनवमी के दिन   बाबा श्रीचंद जी ने गुरु नानक देवजी के घर पुत्र रूप में जन्म लिया   । और जब गुरु नानक जी   विश्व भ्रमण करने के लिए घर से निकल पडे। तब माता सुलाक्खानी   जी बाबा श्रीचंद    और उनके छोटे भाई बाबा लक्ष्मी दास को ले कर अपने माता - पिता के घर चली गई   जो की रवि नदी के बाए किनारे पक्खो के रंधावे में था । बाबा श्रीचंद   जी की शुरुआत बहुत ही एकांत से हुई और जैसे ही वह बडे हुए उन्होंने सांसारिक मामलों में उदासीनता विकसित की । ग्यारह वर्ष   की निविदा उम्र में उन्होंने   अपना   घर परिवार छोड   दिया औरकश्मीर चले गए जहां उन्होंने पंडित पुरुषोत्तम कौल के अंतर्गत संस्कृत ग्रंथो

बाबा श्रीचंद की जीवनी

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  बाबा श्रीचंद की जीवनी बाबा श्रीचंद लुप्तप्राय उदासीन संप्रदाय के पुन : प्रवर्तक आचार्य है। उदासीन गुरुपरंपरा में उनका 165 वाँ स्थान हैं। उनकी आविर्भावतिथि संवत 1551 भाद्रपद शुक्ला नवमी तथा अंतर्धानतिथि संवत् 1700 श्रावण शुक्ला पंचमी है। बाबा श्रीचंद के प्रमुख शिष्य श्री बालहास , अलमत्ता , पुष्पदेव , गोविन्ददेव , गुरुदत्त भगवद्दत्त , कर्ताराय , कमलासनादि मुनि थे। बाबा श्रीचंद का जन्म 8 सितम्बर 1494 को पंजाब के कपूरथला जिला के सुल्तानपुर लोधी में हुवा था। उनका माता का नाम सुलखनी था। श्रीचंद जी ने बहुत छोटी उम्र में ही योग के तरीकों में महारथ हासिल कर लिए थे। वे अपने पिता गुरु नानक के प्रति हमेशा समर्पित रहे तथा उन्होंने उदासीन सम्प्रदाय की नीव रखी। उन्होंने दूर - दूर तक यात्रा की और गुरु नानक के बारे में जागरूकता फैल गई। जन्म के समय उनके शरीर पर विभूति की एक पतली परत तथा कानों में मांस के कुंडल बने थे। अतः लोग उन्हें   भगवान शिव का अवतार   मानने लगे।

जय श्री गुरू देव हरे जय श्री महाकाल हरे जय श्री गणेश हरे जय श्री श्याम हरे जय श्री कृष्ण हरे जय श्री चन्द्र हरे जय श्री राम हरे हरिहर

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जय श्री गुरू देव हरे जय श्री महाकाल हरे जय श्री गणेश हरे जय श्री श्याम हरे जय श्री कृष्ण हरे जय श्री चन्द्र हरे जय श्री राम हरे हरिहर

भगवान शिव का अवतार थे बाबा श्रीचंद जी

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  Dhan Dhan Baba Shri Chand Ji पंजाब ऋषि-मुनियों की धरती रही है। इस धरती पर कई महान गुरु व संत हुए हैं। सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरु नानक देव जी के ज्येष्ठ पुत्र बाबा श्री चंद जी बचपन ही से विश्व भ्रमण करने के लिए घर से निकल पडे़। बाबा जी के जन्म के समय ही से शरीर पर धूनी की राख लगी थी व एक कान में मांस की मुंदरा थी। बाबा श्रीचंद जी को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। बाबा श्रीचंद के नाम से बटाला के समीप गांव नानक चक्क भी स्थित है। इस स्थान पर बाबा श्रीचंद जी ने काफी समय व्यतीत किया। यह गद्दी उदासीन अखाड़ा संगल वाला अमृतसर के अधीन है। इस गद्दी पर विराजमान महंत तिलक दास ने बताया कि बाबा श्रीचंद जी विश्व भ्रमण करते-करते गांव कोटली कादराबाद पहुंचे। इनके साथ भक्त भाई कमलिया जी भी थे। बाबा श्री चंद जी ने भाई कमलिया जी को भिक्षा मांगने के लिए गांव में भेजा व खुद गांव के बाहर धुनी लगाकर बैठ गए। भाई कमलिया जी पूरे गांव से होकर लौट आए लेकिन किसी भी गांव वासी ने उन्हें भिक्षा नहीं दी , उल्टा कहा कि पता नहीं कहां-कहां से साधु चले आते हैं। तभी बाबा श्रीचंद जी ने पूरे गांव को थेह [नाश] होने क

ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨੀ ਇਤਿਹਾਸ

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     ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਨੂੰ ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਜੀ ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਉਹ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਸੀ , ਸ਼ਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਬਾਣੀ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਨ ਸੰਪਰਦਾ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਸੀ। ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀਚੰਦ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿਚ ਪੈ ਚੁੱਕੇ ਉਦਾਸੀਨ ਸੰਪਰਦਾਵਾਂ ਦਾ ਪੁਨਰ ਜਨਮ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸਨ। ਉਹ ਉਦਾਸੀਨ ਗੁਰੂ ਪਰੰਪਰਾ ਵਿਚ 165 ਵੇਂ ਨੰਬਰ ' ਤੇ ਹੈ. ਉਸ ਦੇ ਉੱਭਰਨ ਦੀ ਤਾਰੀਖ ਸੰਮਤ 1551 ਭਦਰ ਪੱਦਾ ਸ਼ੁਕਲਾ ਨਵਮੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅੰਤ ਤਾਰੀਖ 1700 ਸ਼ਰਵਣ ਸ਼ੁਕਲਾ ਪੰਚਮੀ ਹੈ। ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀਚੰਦ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਚੇਲੇ ਸ਼੍ਰੀ ਬਲਹਸ , ਅਲਮੱਟਾ , ਪੁਸ਼ਪਦੇਵਾ , ਗੋਵਿੰਦਾ ਦੇਵਾ , ਗੁਰੂਦੱਤ ਭਾਗਵ ਦੱਤ , ਕਰਤਾਰਿਆ , ਕਮਲਸਨਾਦੀ ਮੁਨੀ ਸਨ।    ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਦਾ ਜਨਮ 8 ਸਤੰਬਰ 1494 ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਉਸਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਮ ਸੁਲਖਣੀ ਸੀ। ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਨੇ ਬਹੁਤ ਛੋਟੀ ਉਮਰੇ ਹੀ ਯੋਗਾ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਵਿਚ ਮੁਹਾਰਤ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀ ਸੀ. ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮਰਪਿਤ ਰਿਹੇ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਨ ਸੰਪਰਦਾ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ।  ਬਾਬਾ ਸ਼੍ਰੀਚੰਦ ਜੀ ਨੇ  ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤੱਕ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਫੈਲਾਈ।     ਜਨਮ ਦੇ ਸਮੇਂ , ਉਸ ਦੇ ਕੰਨ ਵਿੱਚ ਵਿਭੂਤੀ ਦੀ ਇੱਕ ਪਤਲੀ ਪਰਤ ਅਤੇ ਮਾਸ ਦੀ ਕੂਡਲ ਬਣੇ ਸਨ. ਇਸ ਲਈ ਲੋਕ ਉਸਨੂੰ ਭਗਵਾਨ ਸ਼ਿਵ ਦਾ ਅਵਤਾਰ